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प्रदूषण की समस्या पर निबंध /प्रदूषण पर निबंध/प्रदूषण की समस्या/Essay on Pollution in Hindi for class 8-9-10


 
प्रदूषण की समस्या पर निबंध /प्रदूषण  पर निबंध/प्रदूषण की समस्या/Essay on Pollution in Hindi for class 8-9-10
 प्रदूषण की समस्या पर निबंध /प्रदूषण  पर निबंध/प्रदूषण की समस्या/Essay on Pollution in Hindi for class 8-9-10

भूमिका-  मानव शरीर का निर्माण मिट्टी, वायु, पानी, अग्नि और आकाश इन पांच तत्वों से हुआ है। ये पांच तत्व मिलकर अग्नि का निर्माण करते हैं। परंतु जब तक  मनुष्य अपने चारों ओर की प्रकृति के अनुसार जीवन यापन करता हैतब तक उसका जीवन सहज और स्वाभाविक रूप से व्यतीत होता है। लेकिन जब वह प्रकृति के क्षेत्र में हस्तक्षेप करता है, तो उसके जीवन में भी समस्याएं उत्पन्न होने लगती हैं। आज विज्ञान की प्रकृति के कारण प्राकृतिक पर्यावरण में प्रदूषण होने लगा है। बढ़ती हुई जनसंख्या के फलस्वरूप मानव प्रकृति के प्रत्येक क्षेत्र का दोहन कर लेना चाहता है । यही कारण है कि मिट्टी, वायु, जल आदि सभी तत्वों में प्रदूषण की मात्रा निरंतर बढ़ती जा रही है। आज यह एक गंभीर समस्या का रूप धारण कर  चुकी है।

  प्रदूषण का अर्थ एवं स्वरूप -  ‘प्रदूषण शब्द का अभिप्राय है- दोष से युक्त होना। अर्थात प्राकृतिक पर्यावरण में विकार उत्पन्न होना। आज नगरों में प्रदूषण की समस्या बढ़ती जा रही है। इसका मुख्य कारण औद्योगिक विकास है। नए-नए कारखाने लगाये जा रहे हैं। इन फैक्ट्रियों की नींव से उड़ता हुआ धुआं पर्यावरण में जहर फैला देता है। बढ़ती जनसंख्या के कारण भवन निर्माण का काम तेजी से चल रहा है। जहां पर दस को रहना चाहिए, वहां पर 100 लोग रहने को मजबूर हैं। बस रेलों व कल-कारखानों के कारण वायु में कार्बन मोनो ऑक्साइड की मात्रा काफी बढ़ती जा रही है। जो कि स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। हवाई जहाज, तेल शोधन, चीनी मिलें, चमड़ा, कागज के कारखाने ईंधन की सहायता से चलाए जाते हैं। उन से पैदा होने वाला धुआँ प्रदूषण फैलाता है, विशेषकर घनी आबादी वाले क्षेत्र इससे अत्यधिक प्रभावित हो रहे हैं। वायु में ऑक्सीजन की मात्रा घटती जा रही है और प्रदूषण फैलता जा रहा है। जिसे तरह-तरह के रोग उत्पन्न हो रहे हैं।

  प्रदूषण के प्रकार- प्रदूषण के अनेक प्रकार हैं। इनको हम मुख्यतः तीन भागों में विभक्त कर सकते हैं। यह वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण। प्रदूषण चाहे पानी का हो अथवा वायु का, वह स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। धीरे-धीरे संसार का वातावरण दूषित होता जा रहा है और ओजोन में छिद्र होने लगे हैं। यह तीनों प्रकार के प्रदूषण हमारे जीवन में अनेक प्रकार के रोग उत्पन्न कर रहे हैं। कहा जाता है कि जापान का टोक्यो शहर सर्वाधिक प्रदूषित नगर है। यहां के पुलिस अधिकारी आवश्यकता पड़ने पर ऑक्सीजन के सिलेंडर का प्रयोग करते हैं। दिल्ली आदि महानगरों के लोग तो मुंह पर रुमाल लपेटकर मोटरसाइकिल और स्कूटर चलाते हैं।

 वायु प्रदूषण- हमारे वायुमंडल में विभिन्न प्रकार की गैसे होती हैं। इनकी मात्रा में संतुलन होना नितांत आवश्यक है। हानिकारक गैस हमारे लिए घातक होती है। गैस संबंधी पदार्थ अक्सर एलमुनियम के कारखानों में होते हैं। इन गैसों के प्रभाव से पेड़ पौधों के पत्ते तक झड़ जाते हैं। पहले बताया जा चुका है कि कल कारखानों से निकलने वाला धुआं वायुमंडल को प्रदूषित करता है। प्रदूषित वायु हमारी आंखों, फेफड़ों तथा पेट के रोगों को उत्पन्न करती है। यही नहीं प्रदूषित वायु हमारे मन मस्तिष्क को भी प्रभावित करने लगती है। शहरों के भीड़ भरे इलाके और औद्योगिक क्षेत्र में वायु प्रदूषण अधिक होता है।


  जल प्रदूषण- जल मानव के लिए जीवन है। वायु प्रदूषण के समान जल प्रदूषण भी हमारे लिए घातक है। इससे पेट में कीड़े उत्पन्न होते हैं तथा पीलिया और हैजा जैसे रोग फैलते हैं। गांव की तो बात ही क्या करनी है, शहरों में भी हमें शुद्ध जल नहीं मिलता। विशेषकर औद्योगिक नगरों में भूमि के गर्भ का जल प्रदूषण के कारण दूषित हो जाता है। उधर महानगरों में गंदे नालों का पानी नदियों और जलाशयों में डाल दिया जाता है। इसे गंगा-यमुना जैसी पावन नदियां प्रदूषित हो चुकी है। दिल्ली से होकर निकलने वाली यमुना नदी का पानी इतना दूषित हो चुका है कि उसे छूने का भी मन नहीं करता। यह पानी पेड़ पौधों के लिए भी हानिकारक है।

 ध्वनि प्रदूषण- ध्वनि प्रदूषण की शहरों ही नहीं बल्कि कस्बों और गांवों की भी समस्या बनती जा रही है। महानगरों में चलने वाले लाउडस्पीकर तथा बड़ी-बड़ी मशीनों का शोर ध्वनि प्रदूषण का बढ़ावा देता है। ध्वनि प्रदूषण से मानव की शरण शक्ति घटती है और मस्तिष्क भी प्रभावित होता है। इस प्रदूषण के कारण धीरे-धीरे मानव की सोचने की शक्ति नष्ट होने लगती है। ध्वनि प्रदूषण के दुष्प्रभाव आने वाली पीढ़ी को भी भुगतने पड़ेंगे। यद्यपि कुछ लोग इसकी ओर ज्यादा ध्यान नहीं दे रहे, लेकिन इसके घातक परिणाम लंबे समय के बाद हमारे सामने आएंगे।

  प्रदूषण की समस्या का हल- प्रदूषण की समस्या का समाधान करने के लिए हमें वन क्षेत्र को बढ़ाना चाहिए। घर, गलियों तथा सड़कों के आसपास अधिक मात्रा में वृक्ष लगाने चाहिए। वृक्षारोपण ही प्रदूषण की मात्रा को कम कर सकता है। इसी प्रकार से कल कारखाने शहरों से दूर स्थापित करने चाहिए तथा महानगरों के गंदे पानी को साफ करने के प्लांट लगने चाहिए। जो वाहन पुराने हो चुके हैं उनके प्रयोग पर प्रतिबंध होने चाहिए। सरकार ने प्रदूषण को रोकने के लिए कानून बनाए हैं लेकिन जब तक इन कानूनों को सख्ती से लागू नहीं किया जाएगा, तब तक हम प्रदूषण को नहीं रोक सकते। स्वस्थ जीवन की सभी को आवश्यकता है। हमारा कर्तव्य बनता है कि हम प्रदूषण को फैलने से रोकें, विशेषकर गांव के लोगों को रोजगार के साधन घरों में ही उपलब्ध कराएं ताकि वे नगरों की ओर पलायन न करें।

निष्कर्ष- आज प्रदूषण एक गंभीर समस्या का रूप धारण कर चुका है/। राष्ट्रीय स्तर पर इसके बारे में विचार किया जाना चाहिए। सर्वप्रथम जनसंख्या वृद्धि पर रोक लगाना नितांत आवश्यक है। यथासंभव पेड़ पौधे लगाने चाहिए और पानी तथा वायु को प्रदूषण से मुक्त करना चाहिए। प्रदूषण मुक्त पर्यावरण ही हमारे जीवन को स्वस्थ बना सकता है।

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