सखि वे मुझसे कहकर जाते कविता का मूल भाव/ सारांश | Sakhi ve mujse kehkar jaatey ka saransh

 

सखि वे मुझसे कहकर जाते कविता का मूल भाव/ सारांश | Sakhi ve mujse kehkar jaatey ka saransh

"सखि, वे मुझसे कहकर जाते " कविता का मूल भाव/ सारांश | Sakhi ve mujse kehkar jaatey ka saransh | मैथिलीशरण गुप्त

 

'सखि, वे मुझसे कहकर जाते' गीत मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित चम्पू काव्य "यशोधरा "से लिया गया है। "यशोधरा" काव्य सिद्धार्थ के गौतम और महात्मा बुद्ध बनने की यात्रा पर आधारित काव्य है,जिसमें यशोधरा के चरित्र की नवीन व्याख्या की गई है।     

सखि, वे मुझसे कहकर जाते,
कह, तो क्या मुझको वे अपनी पथ-बाधा ही पाते?

मुझको बहुत उन्होंने माना
फिर भी क्या पूरा पहचाना?
मैंने मुख्य उसी को जाना
जो वे मन में लाते।
सखि, वे मुझसे कहकर जाते।

स्वयं सुसज्जित करके क्षण में,
प्रियतम को, प्राणों के पण में,
हमीं भेज देती हैं रण में -
क्षात्र-धर्म के नाते
सखि, वे मुझसे कहकर जाते।

हु‌आ न यह भी भाग्य अभागा,
किसपर विफल गर्व अब जागा?
जिसने अपनाया था, त्यागा;
रहे स्मरण ही आते!
सखि, वे मुझसे कहकर जाते।

नयन उन्हें हैं निष्ठुर कहते,
पर इनसे जो आँसू बहते,
सदय हृदय वे कैसे सहते ?
गये तरस ही खाते!
सखि, वे मुझसे कहकर जाते।

जायें, सिद्धि पावें वे सुख से,
दुखी न हों इस जन के दुख से,
उपालम्भ दूँ मैं किस मुख से ?
आज अधिक वे भाते!
सखि, वे मुझसे कहकर जाते।

गये, लौट भी वे आवेंगे,
कुछ अपूर्व-अनुपम लावेंगे,
रोते प्राण उन्हें पावेंगे,
पर क्या गाते-गाते ?
सखि, वे मुझसे कहकर जाते।

संकलित अंश में सिद्धार्थ (गौतम बुद्ध) की पत्नी अपने पति के उसे बिना बताए चुपचाप चले जाने पर अपनी सहेली के समक्ष अफसोस व दुख व्यक्त कर रही है।यहां यशोधरा दुखी मन से अपनी सहेली से अपनी वेदना प्रकट करते हुए कहती है कि उसके पति सिद्धि प्राप्त करने के लिए गए हैं- यह बहुत गौरव की बात है लेकिन बिना बताए गए,यह अत्यंत दुखदायी है। यदि वे बताकर जाते तो क्या यशोधरा उनके मार्ग की बाधा बनती ? (अर्थात वो बाधा नहीं बनती).

    आगे यशोधरा कहती है कि गौतम ने उनको माना बहुत लेकिन पहचान नहीं पाए। वह खुश होकर वही करती,जो एक बार उनके पति के मन में आ जाता था।वह पुन: अफसोस करती है कि वे बताकर नहीं गए।यशोधरा अपनी सखी को अपने क्षत्राणी के धर्म का परिचय देते कहती है कि आवश्यकता पड़ने पर वह अपने पति को प्राणों की बाजी लगाने हेतु स्वयं सुसज्जित कर रणभूमि में भेज देती ! अब तो वह अपने भाग्य को कोसती है कि वह गर्व भी किस पर करे कि जिसने अपनाया था,उसी ने त्याग दिया।अब तो केवल स्मृतियां ही शेष हैं। यशोधरा की आँखों से बहने वाले आँसू इन्हें निष्ठुर कहते हैं लेकिन वह जानती है कि वे इतने दयालु हैं कि यशोधरा की आँखों में आँसू सहन नहीं कर सकते।यशोधरा को विश्वास है कि उन्हें अवश्य  उसकी दशा पर तरस आता होगा। इतने दुखों के बावजूद वह अपने पति के प्रति सदभावनाओं से भरी है। वह कामना करती है कि वे सुखपूर्वक उन सिद्धियों को प्राप्त करें, जिनके लिए उन्होंने गृहत्याग किया था और यह भी चाहती है कि उस साधारण मनुष्य (यशोधरा) के दुख से वे दुखी न हों ।यशोधरा आज उनको उलाहना भी नहीं देना चाहती क्योंकि  अपने दिव्य गुणों के कारण वे उसे और अधिक भाने लगे हैं।आशावादी स्वर में यशोधरा अपनी सखी से कहती है कि वे गए हैं तो लौटेंगे भी और साथ में  कुछ असाधारण उपलब्धियाँ लेकर लौटेंगे। सवाल यही है कि क्या यशोधरा तब तक अपने प्राणों को विसर्जित होने से रोक पाएगी अथवा रोते-रोते वह उनके स्वागत में गीत गा पाएगी? अन्तिम पंक्तियों में पुनः यशोधरा गौतम के बिना बताए चले जाने पर दुख व्यक्त करती हैं। 

 

इस प्रकार 'सखि, वे मुझसे कहकर जाते' कविता में गुप्त जी ने एक बार फिर से नारी जीवन के प्रति अपनी उदार व करुण दृष्टि का परिचय दिया है। यशोधरा के माध्यम से प्रकारान्तर से कवि ने बताया है कि पुरुषों का गृह त्यागी होकर संन्यासी हो जाना स्त्रियों की तुलना में काफी सरल है।

संदर्भ

सखि वे मुझसे कहकर जाते कविता युग प्रवर्तक छायावादी कवि मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित हैं। मैथिलीशरण गुप्त अकेले ऐसे कवि हैं जिन्होंने द्विवेदी युग से आधुनिक काल तक अनेक व्यक्तियों को आत्मसात करते हुए हिंदी कविता को अनेकार्थक में समृद्ध किया।

प्रसंग

इसमें यशोधरा के स्वाभिमानी रूप वर्णन किया गया है। यशोधरा को यह दुख हुआ कि उसकी पति को जाना ही था तो उसे बता कर क्यों नहीं गए अब वह कहती है कि अगर पति मुझे कहकर जाते तो शायद अपनी राह में बाधा ही नहीं पाते।

 व्याख्या

इसमें यशोधरा के स्वाभिमानी रूप वर्णन किया गया है। यशोधरा को यह दुख हुआ कि उसकी पति को जाना ही था तो उसे बता कर क्यों नहीं गए। अब वह कहती है कि अगर पति मुझे कहकर जाते तो शायद अपनी राह में बाधा ही नहीं पाते। सरकारी थी चाहिए यशोधरा यह कह रही है की मेरी पति गौतम मुझे कह क्यों नहीं गए सिद्धि के लिए पति गए यह तो गर्व की बात है परंतु क्यों चोरी चोरी गए सखी अगर वह कह कर जाते तो मुझे अपनी बाधा ना पाते। उन्होंने मुझे माना बहुत परंतु पहचाना नहीं यशोधरा बार-बार कहती है कि हम नारियां कभी पति की राह में बाधा नहीं बनती। हम लोग ही उन्हें सुसज्जित कर के रण में भेजती हैं। क्षत्रिय धर्म का पालन करते होगे हम लोग ही उन्हें युद्ध की मैदान में भेजती हैं इसलिए अगर वह मुझको कहकर जाते तो कभी रह में बाधा न पाते। मेरा भाग्य ही अब अभागा बन गया। अब किस पर यह विफल गर्व जागा। जिसे अपनाया था उन्होंने ही मुझे त्यागा अब केवल यही स्मरण रहा है जब पति छोड़कर जाते हैं तो शायद हमारी आंखे उन्हें निष्ठुर कहते हमारी आंखों से तब जो आंसू निकलती। शायद सहृदय गौतम उसे सह नहीं पाते इसीलिए शायद वह मुझ पर तरस खाकर ही चले गए। फिर यशोधरा अपने मन को समझाती है के पति गए हैं वह जाए और सिद्धि पाए हम जैसे लोगों के दुख से दुखी ना हो मैं किस मुंह से उन्हें उलाहना दूं आज तो वह मुझे अधिक भा गए अगर गए हैं तो लौट कर भी आएंगे और अपने साथ कुछ अनुपम लाएंगे यह जो प्राण आज रो रहे हैं। उन्हें एक दिन जा कर पाएंगे पर ऐसी खुशी से क्या पाएंगे इस बात पर संदेह है यशोधरा एक बात से दुखी होकर बार-बार कहती है सखी वह मुझे कहकर जाते।

विशेष

1) खड़ी बोली है।

2)वियोग का वर्णन है।

3) सिद्धार्थ से गौतम बनन के सफ़र में यशोधर का त्याग है।


(2)

प्रियतम तुम श्रुति पथ से आए कविता में यशोधरा का विरह दिखाई देता है। यशोधरा अपने प्रियतम को संबोधित करते है कहते हैं आप मेरे हृदय में आ गए मेरे कानों के माध्यम से आप मेरे हृदय में आ गए और इसीलिए मैंने अपने होंठो को बंद कर लिया अर्थात किसी से आपके बारे में नहीं कहा। मेरे हास विलास  अर्थात् सांसारिक सुख आपको अपने भाग्य में रख पाए? आप महान गौतम बुद्ध है। क्या आपको अब सांसारिक सुख बांध पाएंगे। आप मे दृष्टि से ओझल हो गए हैं अर्थात अभी भी आप मेरे हृदय में समाए हुए हैं। अब कभी कहते हैं यशोधरा अब क्या कहेंजब आपने यशोधरा का छोड़ ही दिया तो आप कहां रहो कैसे हो इसकी फिक्र यशोधरा नहीं करती। मेरा निस्वार्थ होना व्यर्थ है यदि तुमको मैं खींच कर अपने पास ना रख सकी। अंत में कहते हैं प्रियतम श्रुति पद से आए अर्थात कानों के माध्यम से हृदय में आएं और समा गए।

विशेष

1) भाषा सरल है

2) खड़ी बोली है।

3)विरह की भावना है।

4) वियोग का छंद है।

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