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मातृ-मंदिर | भारत माता का मंदिर कविता की व्याख्या | Bharat Mata ka mandir kavita ki vyakhya

 

मातृ-मंदिर , भारत माता का मंदिर कविता की व्याख्या, Bharat Mata ka mandir kavita ki vyakhya  

मातृ-मंदिर | भारत माता का मंदिर कविता की व्याख्या | Bharat Mata ka mandir kavita ki vyakhya  

भारत माता का मंदिर यह

समता का संवाद जहाँ,

सबका शिव-कल्याण यहाँ

पावें सभी प्रसाद यहाँ।

जाति, धर्म या संप्रदाय का,

नहीं भेद-व्यवधान यहाँ।

राम, रहीम, बुद्ध-ईसा का

सुलभ एक-सा ध्यान यहाँ

भिन्न-भिन्न नव संस्कृतियों के

गुण गौरव का ज्ञान यहाँ।

नहीं चाहिए बुद्धि वैर की,

भला प्रेम-उन्माद यहाँ,

सबका शिव-कल्याण यहाँ,

पावें सभी प्रसाद यहाँ।

 

मिला सत्य का हमें पुजारी,

सफल काम उस न्यासी का,

मुक्ति-लाभ कर्तव्य यहाँ है,

एक एक अनुयायी का ।  

कोटि कोटि कंठों से मिलकर,

उठे एक जयनाद यहाँ,

सबका शिव कल्याण यहाँ,

पावें सभी प्रसाद यहाँ ।

 

मातृ-मंदिर | भारत माता का मंदिर कविता की व्याख्या | Bharat Mata ka mandir kavita ki vyakhya  

[ शिव = मंगलकारी। संप्रदाय = धार्मिक मत या सिद्धान्त। स्वागत = किसी के आगमन पर कुशल-प्रश्न आदि के द्वारा हर्ष प्रकार, अगवानी। भव = संसार।]

सन्दर्भ-प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘हिन्दी’ के ‘काव्य-खण्ड’ में संकलित एवं मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित ‘भारत माता का मंदिर यह’ शीर्षक से उधृत है।

प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने समस्त भारतभूमि को भारत माता का मंदिर (पवित्र स्थल) बताते हुए उसकी विशेषताओं का वर्णन किया है।

व्याख्या-इन पंक्तियों में कवि अपने देश (भारतभूमि) को भारत माता का मंदिर बताते हुए कहता है कि भारत माता का यह ऐसा मंदिर है जिसमें समानता की ही चर्चा होती है। यहाँ पर सभी के कल्याण की वास्तविक कामना की जाती है और यहीं पर सभी को  परम सुख रूपी प्रसाद की प्राप्ति होती है।

इस मंदिर की यह विशेषता है कि यहाँ पर जाति-धर्म या संप्रदाय वाद का कोई भेदभाव नहीं है यानि इस मंदिर में ऐसा कोई व्यवधान या समस्या नहीं है कि कौन किस वर्ग का है। सभी समान हैं। सभी का स्वागत है और सभी को बराबर सम्मान है। कोई किसी भी सम्प्रदाय को मानने वाला हो; चाहे वह हिन्दुओं के इष्टदेव राम हों, मुस्लिमों के इष्ट रहीम हों, चाहे बौद्धों के इष्ट बुद्ध हों या चाहे ईसाइयों के इष्ट ईसामसीह हों यानि इस मंदिर में सभी को बराबर सम्मान है, सभी के स्वरूप का बराबर-बराबर चिन्तन किया जाता है। सभी की ही बराबर पूजा की जाती है। ।

अलग-अलग संस्कृतियों के जो गुण हैं, जिनके द्वारा सम्पूर्ण संसार के मर्म को अलग-अलग रूपों में संचित किया गया है वे सभी इस भारत माता के मंदिर में एकत्र हैं अर्थात् भारत माता के इस पावन मंदिर में सम्पूर्ण संस्कृतियों का समावेश है।

कहने का तात्पर्य यह है कि चाहे कोई भी देश हो सभी के अपने-अपने अलग-अलग धर्म, अलगअलग सम्प्रदाय, अलग-अलग सिद्धान्त तथा अलग-अलग पवित्र स्थल होते हैं किन्तु हमारा भारत देश एक ऐसी पवित्र तीर्थ स्थल है जहाँ निवास करने वाला  प्रत्येक प्राणी सभी धर्मों को मानने वाला तथा सबको सम. भाव से समझने वाला है। हमारा देश अनेकता में एकता का देश है। ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ इसकी भावना है।

काव्यगत सौन्दर्य-
    अनेकता में एकता का अद्वितीय चित्रण किया गया है।
    राष्ट्रप्रेम और स्वदेशाभिमान की भावना को प्रेरित किया गया है।
    भाषा–खड़ी बोली।
    गुण–प्रसाद।
    अलंकार-रूपक, अनुप्रास।
    छन्द-गेय।
    शैली-मुक्तक।
    भावसाम्य-वियोगी हरि द्वारा रचित ‘विश्व मंदिर’।

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