इस जल प्रलय में पाठ का सार
प्रस्तुत
रिपोर्ताश में लेखक ने बाढ़ का सजीव चित्रण किया है। लेखक रेणु जी पटना के समीप एक
ऐसे गाँव में रहते हैं, जहाँ
हर साल कोसी, पनार, गंगा
और महानंदा की बाढ़ से त्रास्त हजारों लोग आते हैं। लोगों की भीड़ तथा बंजर भूमि पर
जानवरों के चरते झुंडों से बाढ़ की भयानक स्थिति के बारे में अंदाजा लग जाता है। सन 1967 में
भयंकर बाढ़ आई थी, तब
पूरे शहर और मुख्यमंत्री निवास तक के डूबने की खबरें सुनाई देती रहीं। लेखक बाढ़ के
प्रभाव व प्रकोप को देखने के लिए अपने एक कवि मित्र के साथ निकले। तभी आते-जाते
लोगों द्वारा आपस में जिज्ञासावश एक-दूसरे को बाढ़ की सूचना से अवगत कराते देख लेखक
गांधी मैदान के पास खड़े लोगों के पास गए।
शाम
के लगभग सात बजे लोग पान की दुकान के सामने समाचार सुन रहे थे। समाचार दिल को
दहलाने वाला था कि पानी लगातार बढ़ता जा रहा था। अचानक पानवाले की बिक्री बढ़ गई थी।
केवल लेखक को ही दुख हो रहा था। सभी लोग कह रहे थे कि एक बार पटना डूब जाए तो सब
पाप धुल जाएँगे।
लेखक
अपने फ्लैट में घुसे ही थे कि लाउडस्पीकर से घोषणा करने वाली गाड़ी यह ऐलान करती जा
रही थी-‘‘भाइयो! ऐसी संभावना है कि रात्रि के
लगभग बारह बजे तक बाढ़ का पानी लोहानीपुर, कंकड़बाग
और राजेन्द्र नगर में घुस आएगा। अतः आप सब सावधन हो जाएँ।’’ रात
में देर तक जगने के बाद लेखक सोना चाहते हैं, पर
नींद नहीं आती। वे कुछ लिखना चाहते हैं और तभी उनके दिमाग में कुछ पुरानी यादें
तरोताजा हो जाती हैं। सन 1947 में
मनिहारी (तब पूर्णिया, अब
कटिहार) शिले में बाढ़ आई थी। लेखक गुरु जी के साथ नाव पर दवा, किरोसन
तेल, ‘पकाही घाव’ की
दवा और दियासलाई आदि लेकर सहायता करने के लिए वहाँ गए थे।
इसके
बाद 1949 में महानंदा
नदी ने भी बाढ़ का कहर बरपाया था। लेखक वापसी थाना के एक गाँव में बीमारों को नाव
पर चढ़ाकर कैंप ले जा रहे थे, तभी
एक बीमार के साथ उसका कुत्ता भी नाव पर चढ़ गया। जब लेखक अपने साथियों के साथ एक
टीले के पास पहुँचे तो वहाँ एक ऊँची स्टेश बनाकर ‘बलवाही’ का
नाच हो रहा था और लोग मछली भूनकर खा रहे थे। एक काला-कलूटा ‘नटुआ’ लाल
साड़ी में दुलहन के हाव-भाव को दिखा रहा था।
फिर
एक बार सन 1967 की बाढ़ में
पुनपुन नदी का पानी राजेन्द्र नगर में घुस गया था। नाव पर एक सजी-धजी टोली फिल्मी
तरीके से घर बैठे कश्मीर का आनंद लेने के लिए निकली हुई थी आरै नाव पर ही चाय और
नैसकैफे के पाउडर को मथकर ‘एस्प्रेसो’ तैयार
किया जा रहा था। दूसरी ओर एक लड़की रंगीन पत्रिका पढ़ रही थी तथा फिल्मी अंदाज़ में
गाना बज रहा था ‘हवा में उड़ता
जाए, मोरा लाल दुपट्टा मलमल का, हो जी
हो जी!’ और एक युवक द्वारा युवती के घुटने
पर कोहनी टेककर मनमोहक ‘डायलाॅग’ बोला
जा रहा था। लेकिन जब उनकी नाव गोलघर पहुँची तब अचानक चारों ब्लाॅक की छतों पर खड़े
लड़कों द्वारा एक ही साथ किलकारियों, सीटियों
और फब्तियों की ऐसी वर्षा की गई कि उन फूहड़ युवकों की सारी शैतानियाँ तुरंत गायब
हो गई।
रात
के ढाई बजे का समय था। लेखक को नींद आ गई। सुबह साढ़े पाँच बजे जब लोगों ने उन्हें
जगाया तो लेखक ने देखा कि सभी जागे हुए थे और पानी मोहल्ले में दस्तक दे चुका था।
चारों ओर शोर-कोलाहल-कलरव, चीख-पुकार
और पानी की लहरों का नृत्य दिखाई दे रहा था। चारों ओर पानी ही पानी दिखाई दे रहा
था। पानी बहुत तेजी से चढ़ रहा था। लेखक ने बाढ़ का दृश्य तो अपने बचपन में भी देखा
था, परंतु इस तरह अचानक पानी का चढ़ आना उन्होंने
पहली बार देखा था।
इस जल प्रलय में पाठ केअभ्यास के
प्रश्न:
प्रश्न-1 : बाढ़ की
खबर सुनकर लोग किस तरह की तैयारी करने लगे ?
उत्तर - बाढ़ की
खबर से सारे शहर में आतंक मचा हुआ था। लोग अपने सामान को नीचली मंजिल से ऊपरी
मंजिल में ले जा रहे थे। सारे दुकानदार अपना सामान रिक्शा, टमटम, ट्रक और
टेम्पो पर लादकर उसे सुरक्षित स्थानों पर ले जा रहे थें। खरीद-बिक्री बंद हो चुकी
थी। लोग घरों में खाने का सामान, दियासलाई, मोमबत्ती, दवाईयाँ, किरोसीन
आदि का प्रबन्ध करने में लगे हुए थे।
प्रश्न-2 : बाढ़ की
सही जानकारी लेने और बाढ़ का रूप देखने के लिए लेखक क्यों उत्सुक था ?
उत्तर- लेखक ने पहले बाढ़
के बारे में सुना जरूर था पर कभी देखा नही था। उसने अपनी कई रचनाओ में बाढ़ की
विनाशलीला का उल्लेख किया था। वह स्वयं अपनी आँखों से बाढ़ के पानी को शहर में
घुसते और उसकी विनाशलीला के बारे में जानने को उत्सुक था।
प्रश्न-3 : 'मृत्यु
का तरल दूत' किसे कहा गया है और क्यों?
उत्तर- बाढ़ के लगातार
बढ़ते जल को 'मृत्यु का तरल दूत' कहा गया
है। बाढ़ के इस आगे बढ़ते हुए जल ने न जाने कितने प्राणियों को उजाड़ दिया था, बहा दिया
था और बेघर करके मौत की नींद सुला दिया था। इस तरल जल के कारण लोगों को मरना पड़ा, इसलिए
इसे मृत्यु का तरल दूत कहना बिल्कुल सही है।
प्रश्न-4 : खरीद-बिक्री
बंद हो चुकने पर भी पान की बिक्री अचानक क्यों बढ़ गई थी?
उत्तर- खरीद-बिक्री बंद
हो चुकने पर भी पान की बिक्री अचानक बढ़ गई थी क्योंकि लोग बाढ़ को देखने के लिए
बहुत बड़ी संख्या में इकट्ठे
हो गए थे। वे बाढ़ से भयभीत नहीं थे, बल्कि
हंसी-खुशी और कौतुहल से युक्त थे। ऐसे समय में पान उनके लिए समय गुजारने का सबसे
अच्छा साधन था।
प्रश्न-5 : जब लेखक
को यह अहसास हुआ की उसके इलाके में भी पानी घुसने की संभावना है तो उसने क्या-क्या
प्रबंध किए?
उत्तर- जब लेखक को अहसास
हुआ की उसके इलाके में भी पानी घुसने की संभावना
है तो उन्होंने आवश्यक ईंधन, आलू, मोमबत्ती, दियासलाई, पीने का
पानी, कम्पोज की गोलियाँ इकट्ठी कर लीं ताकि
बाढ़ से घिर जाने पर कुछ दिनों तक गुजारा चल सकें। उन्होंने बाढ़ आने छत पर चले
जाने का भी प्रबंध सुनिश्चित कर लिया।
प्रश्न-6 : बाढ़
पीड़ित क्षेत्र में कौन-कौन सी बीमारियों के फैलने की आशंका रहती है?
उत्तर - बाढ़ के
बाद हैजा, मलेरिया, टाइफाइड
आदि बीमारियों के फैलने की संभावना रहती है क्योंकि बाढ़ के उतरे पानी में मच्छर
अत्यधिक मात्रा में पनपते हैं जिसके कारण मलेरिया जैसी बीमारी हो जाती है। पानी की
कमी से लोगो को गंदा पानी पीना पड़ता है जो हैजा और टाइफाइड जैसी बीमारियों को
न्यौता देता है।
इस जल प्रलय में/Is Jal pralay mein class 9 in Hindi/फणीश्वरनाथ रेणु/पाठ का सार और अभ्यास के प्रश्न
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