होलिका/होली का उत्सव/Essay on Holi in Hindi/Holi Ka Nibandh/होलिका दहन
होली धार्मिक ही नहीं
बल्कि सांस्कृतिक दृष्टि से विशेष त्यौहार है, एक तरह से देखा
जाए तो यह उत्सव प्रसन्नता को मिल-बांटने का एक अपूर्व अवसर है। हमारी संस्कृति की
सबसे बड़ी विशेषता है कि यहाँ पर मनाये जाने वाले सभी त्यौहार समाज में मानवीय
गुणों को स्थापित करके लोगों में प्रेम, एकता एवं सद्भावना
को बढ़ाते हैं। यहाँ मनाये जाने वाले सभी त्योहारों के पीछे की भावना मानवीय गरिमा
को समृद्धि प्रदान करना होता है। होली का विशेष संदेश है कि जिस तरह प्रकृति रंगों
से भरी है, वैसे ही जीवन भी रंगों से भरा होना चाहिए।
जीवन
के रंग ऐसे होने चाहिए, जिससे स्वयं के साथ-साथ ईश्वर में
गहरी श्रद्धा उत्पन्न हो। किसी भी उत्सव के साथ पवित्रता जुड़ जाए, तो वह पूर्ण हो जाता है, इस दृष्टि से होली एक
परिपूर्ण त्यौहार है। यह विलक्षण पर्व है जिसमें केवल शरीर ही नहीं, चेतना भी उत्सव मनाती है। होली खुशी का त्योहार है। हमारे अंदर जो खुशी है,
वही हमारी आत्मा का भी रंग है।
होलिका-दहन से सारे अनिष्ट दूर हो जाते हैं।
होली के त्यौहार में विभिन्न प्रकार की क्रीड़ाएँ होती हैं, बालक गाँव के बाहर से लकड़ी तथा कंडे लाकर ढेर लगाते हैं। होलिका का पूर्ण
सामग्री सहित विधिवत् पूजन किया जाता है, अट्टहास, किलकारियों तथा मंत्रोच्चारण से पापात्मा राक्षसों का नाश हो जाता है।
होलिका-दहन से सारे अनिष्ट दूर हो जाते हैं। वस्तुतः होली आनंदोल्लास का पर्व है।
इस पर्व के विषय में सर्वाधिक प्रसिद्ध कथा प्रह्लाद तथा होलिका के संबंध में भी
है। नारदपुराण में बताया गया है कि हिरण्यकशिपु नामक राक्षस का पुत्र प्रह्लाद
अनन्य हरि-भक्त था, जबकि स्वयं हिरण्यकशिपु नारायण को अपना
परम-शत्रु मानता था। उसके राज्य में नारायण अथवा श्रीहरि नाम के उच्चारण पर भी
कठोर दंड की व्यवस्था थी। अपने पुत्र को ही हरि-भक्त देखकर उसने कई बार चेतावनी दी,
किंतु प्रह्लाद जैसा परम भक्त नित्य प्रभु-भक्ति में लीन रहता था।
हारकर उसके पिता ने कई बार विभिन्न प्रकार के उपाय करके उसे मार डालना चाहा। किंतु,
हर बार नारायण की कृपा से वह जीवित बच गया। हिरण्यकशिपु की बहिन
होलिका को अग्नि में न जलने का वरदान प्राप्त था। अतः वह अपने भतीजे प्रह्लाद को
गोद में लेकर अग्नि में प्रवेश कर गई। किंतु प्रभु-कृपा से प्रह्लाद सकुशल जीवित
निकल आया और होलिका जलकर भस्म हो गई। होली का त्योहार ‘असत्य पर सत्य की विजय’ और
‘दुराचार पर सदाचार की विजय’ का प्रतीक है।
इस प्रकार होली का पर्व सत्य, न्याय, भक्ति और विश्वास की विजय तथा अन्याय,
पाप तथा राक्षसी वृत्तियों के विनाश का भी प्रतीक है।
भगवान कृष्ण द्वारा राक्षसी पूतना के वध दिवस के रूप में
होली एक ऐसा त्योहार है, जो हमारे सारे बंधनों को तोड़ता है और हमें एक कर देता है। इसलिए हम
एक-दूसरे को रंग लगाते हैं और कहते हैं, आपका जीवन भी रंगों
से भरा हो। रंगों के उल्लास के अलावा होली के पर्व को मनाने के लिये और भी बहुत ही
पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। उत्तर पूर्व भारत में होलिकादहन को भगवान कृष्ण द्वारा
राक्षसी पूतना के वध दिवस के रूप में जोड़कर, पूतना दहने के
रूप में मनाया जाता है तो दक्षिण भारत में मान्यता है कि इसी दिन भगवान शिव ने
कामदेव को तीसरा नेत्र खोल भस्म कर दिया था ओर उनकी राख को अपने शरीर पर मल कर
नृत्य किया था। तत्पश्चात् कामदेव की पत्नी रति के दुख से द्रवित होकर भगवान शिव
ने कामदेव को पुनर्जीवित कर दिया, जिससे प्रसन्न होकर
देवताओं ने रंगों की वर्षा की। इसी कारण होली की पूर्व संध्या पर दक्षिण भारत में
अग्नि प्रज्ज्वलित कर उसमें गन्ना, आम की बौर और चन्दन डाला
जाता है। यहाँ गन्ना कामदेव के धनुष, आम की बौर कामदेव के
बाण, प्रज्ज्वलित अग्नि शिव द्वारा कामदेव का दहन एवं चन्दन
की आहुति कामदेव को आग से हुई जलन हेतु शांत करने का प्रतीक है।
महानगरीय संस्कृति में होली मिलन के आयोजन
होली के उपलक्ष्य में
अनेक सांस्कृतिक एवं लोक चेतना से जुड़े कार्यक्रम होते हैं। महानगरीय संस्कृति में
होली मिलन के आयोजनों ने होली को एक नया उल्लास एवं उमंग का रूप दिया है। इन
आयोजनों में बहुत शालीन तरीके से गाने बजाने के सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं।
घूमर जो होली से जुड़ा एक राजस्थानी कार्यक्रम है उसमें लोग मस्त हो जाते हैं। चंदन
का तिलक और ठंडाई के साथ सामूहिक भोज इस त्यौहार को गरिमामय छबि प्रदान करते हैं।
देर रात तक चंग की धुंकार, घूमर, डांडिया
नृत्य और विभिन्न क्षेत्रों की गायन मंडलियाँ अपने प्रदर्शन से रात बढ़ने के
साथ-साथ अपनी मस्ती और खुशी को बढ़ाते हैं। आज कोरोनो वायरस की विकृति के चलते सारा
माहौल प्रदूषित एवं भयभीत हो चुका है, जीवन के सारे रंग फिके
पड़ गए हैं। न कहीं आपसी विश्वास रहा, न किसी का परस्पर प्यार,
न सहयोग की उदात्त भावना रही, न संघर्ष में
एकता का स्वर उठा। बिखराव की भीड़ में न किसी ने हाथ थामा, न
किसी ने आग्रह की पकड़ छोड़ी। यूँ लगता है सब कुछ खोकर विभक्त मन अकेला खड़ा है फिर
से सब कुछ पाने की आशा में। कितनी झूठी है यह प्रतीक्षा, कितनी
अर्थ शून्य है यह अगवानी।
हम भी भविष्य की अनगिनत संभावनाओं को साथ लिए आओ फिर से
एक सचेतन माहौल बनाएँ। उसमें सच्चाई का रंग भरने का प्राणवान संकल्प करें। होली के
लिए माहौल भी चाहिए और मन भी चाहिए, ऐसा मन जहाँ हम सब एक
हों और मन की गंदी परतों को उखाड़ फेकें ताकि अविभक्त मन के आइने में प्रतिबिम्बित
सभी चेहरे हमें अपने लगें।
बसन्तोत्सव का आगमन
मथुरा और वृन्दावन में
होली की भव्य छटाएं देखने को मिलती है। बसन्तोत्सव के आगमन के साथ ही वृन्दावन के
वातावरण में एक अद्भुत मस्ती का समावेश होने लगता है, बसन्त का भी उत्सव यहाँ बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है । इस उत्सव की आनन्द
लहरी धीमी भी नहीं हो पाती कि प्रारम्भ हो जाता है, फाल्गुन
का मस्त महीना। फाल्गुन मास और होली की परम्पराएँ श्रीकृष्ण की लीलाओं से सम्बद्ध
हैं और भक्त हृदय में विशेष महत्व रखती हैं। श्रीकृष्ण की भक्ति में सराबोर होकर
होली का रंगभरा और रंगीनीभरा त्यौहार मनाना एक विलक्षण अनुभव है। मंदिरों की नगरी
वृन्दावन में फाल्गुन शुक्ल एकादशी का विशेष महत्व है। इस दिन यहाँ होली के रंग
खेलना परम्परागत रूप में प्रारम्भ हो जाता है। मंदिरों में होली की मस्ती और भक्ति
दोनों ही अपनी अनुपम छटा बिखेरती है।
होली के रसिया और गीत, भक्ति प्रधान नृत्य
इस दिव्य मास और होली के रंग में अपने आपको रंगने के लिये
भक्तगण होली पर सुदूर प्रान्तों एवं स्थानों से वृन्दावन आकर आनन्दित होते हैं।
उनकी वृन्दावन तक की यात्रा कृष्णमय बनकर चलती हैं और उसमें भी होली की मस्ती छायी
रहती है। रास्ते भर बसों में गाना-बजाना, होली के रसिया
और गीत, भक्ति प्रधान नृत्य, कभी-कभी
तो विचित्र रोमांच होने लगता है । वृन्दावन की पावन भूमि में पदार्पण होते ही
भक्तों की टोलियों का विशेष हृदयग्राही नृत्य बड़ा आकर्षक होता है। लगता है,
बिहारीजी के दर्शनों की लालसा में ये इतने भाव-विह्वल हैं कि जमीन
पर पैर ही नहीं रखना चाहते।
कोई किसी तरह की चिन्ता नहीं, कोई
द्वेष और मनोमालिन्य नहीं, केवल सुखद वातावरण का ही बोलबाला
होता है। होली को सम्पूर्णता से आयोजित करने के लिये मन ही नहीं, माहौल भी चाहिए और यही वृंदावन आकर देखने को मिलता है।
होली शब्द का अंग्रेजी भाषा में अर्थ होता है पवित्रता
होली शब्द का अंग्रेजी भाषा में अर्थ होता है पवित्रता।
पवित्रता प्रत्येक व्यक्ति को काम्य होती है और इस त्योहार के साथ यदि पवित्रता की
विरासत का जुड़ाव होता है तो इस पर्व की महत्ता शतगुणित हो जाती है। प्रश्न है कि
प्रसन्नता का यह आलम जो होली के दिनों में जुनून बन जाता है, कितना स्थायी है? डफली की धुन एवं डांडिया रास की
झंकार में मदमस्त मानसिकता ने होली जैसे त्योहार की उपादेयता को मात्र इसी दायरे
तक सीमित कर दिया, जिसे तात्कालिक खुशी कह सकते हैं, जबकि अपेक्षा है कि रंगों की इस परम्परा को दीर्घजीविता प्रदान की जाए।
स्नेह और सम्मान का, प्यार और मुहब्बत का, मैत्री और समरसता का ऐसा शमां बांधना चाहिए कि जिसकी बिसात पर मानव कुछ
नया भी करने को प्रेरित हो सके। उत्सव चेतना का स्वभाव है और जो उत्सव मौन से
उत्पन्न होता है, वह वास्तविक है। होली चेतना का उत्सव है।
जो जितना अधिक स्वयं के द्वारा स्वयं को आनन्दित महसूस करता है, उसके जीवन में उतने ही रंगों से छटाएं भर जाती है।
उपसंहार
होली जैसे त्यौहार में सब
तरह के भेद मिट जाते हैं, तब ऐसी भावना करनी चाहिए कि होली
की अग्नि में हमारी समस्त पीड़ाएँ दुःख, चिंताएँ, द्वेष-भाव आदि जल जाएँ तथा जीवन में प्रसन्नता, हर्षोल्लास
तथा आनंद का रंग बिखर जाए। होली का कोई-न-कोई संकल्प हो और यह संकल्प हो सकता है
कि हम स्वयं शांतिपूर्ण जीवन जीये और सभी के लिये शांतिपूर्ण जीवन की कामना करें।
ऐसा संकल्प और ऐसा जीवन सचमुच होली को सार्थक बना सकते हैं।
(ललित गर्ग)
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