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गोस्वामी तुलसीदास का जीवन परिचय-GOSWAMI TULSIDAS BIOGRAPHY IN HINDI

गोस्वामी तुलसीदास का जीवन परिचय-GOSWAMI TULSIDAS BIOGRAPHY IN HINDI

गोस्वामी तुलसीदास का जीवन परिचय-GOSWAMI TULSIDAS BIOGRAPHY IN HINDI 

गोस्वामी तुलसीदास का जीवन परिचय


 हिंदी साहित्य के चंद्रमा कहलाने वाले महाकवि गोस्वामी तुलसीदास जी का जन्म सन 1532 ईस्वी में हुआ। सूरदास जी की तरह इनके जन्म स्थान के विषय में भी विद्वानों में मतभेद हैं। कुछ विद्वान इनका जन्म स्थान राजापुर नामक गांव जिला बांदा उत्तर प्रदेश में मानते हैं, तो कुछ विद्वान इनका जन्म स्थान सोरों नामक गांव (जिला एटा) में मानते हैं । इनकी माता का नाम हुलसी देवी तथा पिता का नाम आत्माराम दुबे था। इनके बचपन का नाम रामबोला था । अशुभ नक्षत्र में पैदा होने के कारण इनके माता-पिता ने बचपन में ही इनका त्याग कर दिया । अतः इनका बचपन बहुत कष्टों और कठिनाइयों में बीता । 5 वर्ष की अवस्था तक इन्हें मुनिया नामक एक दासी ने पाला और फिर इन्हें बाबा नरहरी दास की शरण में छोड़ गई । बाबा नरहरी दास ने ही इनको पाला पोसा और शिक्षा प्रदान की। अपने गुरु की देखरेख में इन्होंने वेद, काव्य, दर्शन, ज्योतिष इत्यादि का अध्ययन किया। इनका विवाह पंडित दीनबंधु पाठक की सुपुत्री रत्नावली से हुआ था और उन्हीं के उपदेश से प्रेरित होकर यह गृह त्याग कर विरक्त हो गए थे । तुलसीदास  बहुत दिनों तक अयोध्या, कांशी, चित्रकूट आदि स्थानों का भ्रमण करते रहे । उन्होंने लगभग 42 वर्ष की अवस्था में सन 1574 में अयोध्या में राम चरितमानस की रचना आरंभ की थी । जो लगभग 2 वर्ष 7 माह में पूर्ण हुई ।सन 1623 में काशी के असी घाट पर इस महान कवि का परलोकवास हुआ । इस संदर्भ में एक दोहा प्रसिद्ध है -

 “संवत सोलह सौ असी, असी गंग के तीर।
 श्रावण शुक्ला सप्तमी, तुलसी तज्यों शरीर।’’

गोस्वामी तुलसीदास की प्रमुख रचनाएं 


तुलसीदास की 12 रचनाएं प्रसिद्ध है। जिनमें रामचरितमानस, विनय पत्रिका, कवितावली, दोहावली, जानकी मंगल, पार्वती मंगल आदि उल्लेखनीय हैं ।

 गोस्वामी तुलसीदास की काव्यगत विशेषताएं 


तुलसीदास राम भक्त कवि थे । रामचरितमानस इन की अमर रचना है । तुलसीदास आदर्शवादी विचारधारा के कवि थे । जिन्होंने राम के सगुण रूप की भक्ति की है तथा राम के चरित्र के विराट स्वरूप का वर्णन किया है । पिता, पुत्र, भाई, पति, प्रजा,, राजा, स्वामी, सेवक सभी का आदर्श रूप में चित्रण किया गया है । तुलसीदास के साहित्य की अन्य प्रमुख विशेषता है कि तुलसीदास जी का समन्वय वादी दृष्टिकोण है । इनकी रचना में ज्ञान, भक्ति कर्म, धर्म, संस्कृति, सगुण और निर्गुण आदि का सुंदर समन्वय दिखाई देता है । तुलसीदास की भक्ति दासभाव की  भक्ति है । वे अपने आराध्य श्री राम को श्रेष्ठ और स्वयं को तुच्छ या हीन स्वीकार करते हैं । तुलसीदास का कथन है -

 “राम सो बड़ो है कौन, मोसो कौन है छोटो?
 राम सो खरों है कौन, मोसो कौन है खोटो?’’

तुलसीदास जी अपने युग के महान समाज सुधारक थे । इनके काव्य में आदि से अंत तक जनहित की भावना भरी हुई है । तुलसीदासजी के काव्य में उनके भक्त कवि और समाज सुधारक तीनों रूपों का अद्भुत समन्वय मिलता है ।

  गोस्वामी तुलसीदास की भाषा शैली 


 तुलसीदास जी ने अपना अधिकांश काव्य अवधी भाषा में लिखा है, किंतु  ब्रज भाषा पर भी इन्हें पूर्ण अधिकार प्राप्त था । इनकी भाषा में संस्कृत की कोमलकांत पदावली की शुमधुर झंकार है । भाषा की दृष्टि से इनकी तुलना हिंदी के किसी अन्य कवि से नहीं हो सकती । इनकी भाषा में समन्वय का प्रयास है । वह जितने लौकिक है, उतनी ही शास्त्रीय भी है । इन्होंने अपने काव्य में अलंकारों का स्वाभाविक प्रयोग किया है । भावों के चित्रण के लिए इन्होंने उत्प्रेक्षा, रूपक, उपमा, अलंकारों का अधिक प्रयोग किया है ।

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